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आज फिर पूछना है ॥

आसमां के बादलों ने आज फिर अपनी मौजूदगी दर्ज की है,
लगता है आज फिर कहीं जल-समूहों ने अपनी पहचान खोई है ,
जिस ताप ने मजबूर किया उनको बदलने को,
आज फिर उन्ही को मिटाने की रण छिड़ी है ।

जब जब ताप बढ़ा है जगत मे, एक नए रूप का सृजन होता है ....

October 14, 2022

© drateendrajha.com

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Shayari

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आज 14 ऑक्टोबर 2022 कुछ अलग सा माहोल है हवाओं मे , आज वो खोता हुआ नजर आता है जिसका सृजन ही उत्थान के लिए हुआ है। बहुत खूब लगता है उनको देखना, जिनको हम खुद अपने हाथों से बनाते हैं । परंतु कभी कभी ऐसा एहसास होता है जैसे अक्सर सृजन करता परिस्थितियाँ होती है न की कोई व्यक्ति विशेष। परिस्थितिया हमे बताती है हमे कैसा होना चाहिए । परंतु हम जैसे है, उन स्थितियों के सही या गलत की पहचान हमारा विवेक और हमारे संस्कार करवाते हैं ।


एक ऐसी ही घटना का जिक्र मै कर रहा हूँ। कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात ऐसे व्यक्ति से हुई जिनको अपने ऊपर इस बात का गुरूर था की उन्होंने कई गरीबों की सहायता कर उन्हे उनके जीवन मे आगे बढ़ाने का मार्ग दिखाया । यह सुनिश्चित किया की उनसे सहायता प्राप्त कर जीवन की ज्योति लिए बढ़ रहे निर्धन लोग अपने पैरों पर खरे हो सके ।


यहां तक तो सब सही था , गलत तो तब हुआ जब उनकी यह भावना उन तक ही सीमित रह गाई। उन्होंने अपनी सहायता दी पर अपना व्यक्तित्व नहीं। उनके द्वारे लाए गए परिवर्तन उत्थान नहीं बल्कि एक नई अनदेखी विनाश की तरफ बढ़ रहे थी ।


जिन व्यक्तियों की उन्होंने सहायता की थी वे उन्हे ही अपने महत्वाकांक्षी भावनाओं का ग्रास बनाने के ताक मे थे। उन्होंने इसे एक व्यापार बना लिया। वे अब दूसरों की सहायत करते और इस कार्य मे वो दूसरे लोगों से पैसा इकठ्ठा करने लगे। मानवता और सहणभूति के अस्त्रों को प्रयोग कर उन्होंने कई लोगों से पैसे लिए और अपने सृजन करता के सिद्धान्तों को साक पर रखते हुए दुनिया की नजरों से ओझल हो गए। अब दो संग्राम सृजन कर्ता के जिंदगी में कुंडल मार के बैठे थे , एक संग्राम था जिसमे सृजन करता अपनी खुद के सिद्धांतों से यह प्रश्न कर रहा था की तुम गलत हो या सही और दूसरा संग्राम था समाज और उसमे , जहां समाज उससे प्रश्न कर रहा था की वह सही है या गलत ?


अब इन संग्रामों ने सृजन कर्ता के नए व्यक्तित्व का निर्माण किया जिसने समाज मे कसी प्रकार की सहायता न करने का संकल्प लिया । अब चिंता का विषय यह है की एक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को छोरेगा तो यह कहा तक सही होगा। क्या यह व्यक्तित्व परिवर्तन आवश्यक था ? तो फिर यह बात तो वही हो गई की

मेरे घर मे आग लागि है , चलो चिंगारियों की मुलाकात दूसरे घरों से करवाते हैं ।

इसकी जगह क्या यह सही नहीं होगा की हम अपने व्यक्तित्व को न मरने दे । उसे विजयी तभी माना जा सकता जब वह अपने अस्तित्व को जिंदा रखे ।




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