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खूनी कमरबंद

हम मजबूर तब भी नहीं थे, हम मजबूर अब भी नहीं हैं।
बस फितरत नहीं है, किसी को रुलाने की।
कभी समय मिले झाँक कर देख लेना अपने कमरबंद में,
मेरे खून की लाली दिखेगी, उनके चमक में।

हम  मजबूर तब भी नहीं थे, हम मजबूर अब भी नहीं हैं। बस फितरत नहीं है......

March 27, 2021

© drateendrajha.com

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Shayari

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